मात्राभार -16 प्रति चरण,सम चरणान्त -।।,लयबद्ध
सुघड़ सलोना मुखड़ा सुन्दर,
चाॅंद उतर आया धरती पर ।
रजत धवल है आभा मनहर,
झाॅंक रहा टहनी से छिपकर ।।
एक उर्वशी आई छत पर,
काया नूतन नवल कलेवर ।
अपलक नयनों से निहारती,
अंतराल पर थोड़ा रुक कर ।।
उत्तरीय ओढ़े पीताम्बर,
नीलरंग का फरिया उसपर ।
गोरांगना गुलाबी वदना,
चोली कसी हुई थी तन पर ।।
खुली हुई थी केश राशियाॅं,
घेर रही थी आनन सुन्दर ।
मानों आधा चाॅंद खिला हो,
हटा रही हाथों से सत्वर ।।
दो -दो चाॅंद कहाॅं से उतरा,
लगा सोचने मैं तो क्षण भर ।
पलकें झुकी ज़रा -सी मेरी,
चली गई वो झूम झमककर ।।
संशय की थी रेखा गहरी,
उभरी मेरे मन -मानस पर ।
पूनम जैसा मुखड़ा उसका,
भ्रम था मेरे मन के अंदर ।।
नोट:- यह रचना मौलिक, स्वरचित व संरक्षित है ।
प्रस्तुति
रमेशचन्द्र द्विवेदी
हल्द्वानी -नैनीताल