जय श्री राम
कैसे मैं समझाऊंँ तुमको,
चीज हैं क्या मेरे श्रीराम।
जब तक अहं नहीं छोड़ोगे,
तब तक नहीं प्रकाशित राम।।
जिसने भी है भाव जगाया,
उसको ही हैं मिलते राम।
जो जग में जगहित रहता है,
उसको ही समझाते राम।।
निश्छल और निष्कपट है जो,
उसको ही भाता छवि-राम।
जिसकी निष्ठा परम पुनीता,
उसके ही हिय रमते राम।।
भारत की माटी का है जो,
उसके ही जेहन में राम।
जो परहित-कातर प्रेमी है,
उसकी ही अभिव्यक्ति राम।।
मन जिसमें रमता हर पल ही,
परमतत्व हैं वह श्रीराम।
दीनदयाल बिरुद जिनका है,
परम मनोरम हैं श्रीराम।।
रग-रग में हैं, रोम-रोम में,
हैं हरि व्यापक, हैं भगवान।
द्वादशकलायुक्त चारित्रिक
हैं प्रतिमान प्रभु श्रीराम।।
- पुष्कर प्रधान
प्रा वि बेरमाँव, सुजानगंज, जौनपुर (यमदग्निपुरम्)